ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

नयना : भाग-4-चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा 'अकिंचन"

नयना : भाग-4

तुलसी क जब पगलइलं नयना,
मुरदा के लट्ठ समझलं नयना। 
चढ़ गइलं कोठा पर जा ससुरे,
सरप के रसरी समझलं नयना।।

        पत्नी फटकार गइलं दुइ नयना ,
        जबि देहियां नेह लगइलं नयना।
        रमबोला,राम के चहतs अइसन, 
        राम क दरसन करवइतं नयना।।

विलवा मंगल के रहलं शुचि नयना,
कउन कसूर कइलन इ दुइ नयना?
सूरदास कहलइलं फोड़ि के नयना,
किसनाजी बसलन आ अंतर नयना।।

         नयना अंतर बुलाय के किसना ,
         मीरा ढाँपि लेहलिन जब नयना। 
         किसना मय होइ गइलिन मीरा,
         फिर ना देखलिन दूजा के नयना।।

नयना सुरति देखइलं कबिरा, 
अलख के लखिके कबीरा नयना। 
दुनिया के राह देखइलं नयना, 
रहबर बनलं कबिरा क नयना।।

         चपला चमकल केशव के नयना, 
         जा पनघट तकि पहुँचइलं नयना। 
         केशव केशन पनिहारिन देखलिन,
       बाबा कहलिन मृग लोचनि नयना।। 

अरिया जइसन सुनलं बचना, 
झटिका खइलं उर क नयना। 
केशव केशव दास कहलइलं ,
केशव रंग रंगइलं जब नयना।।

          एक आँख से देखिहं जब नयना,
          जग समदर्शी कहलइहँ नयना । 
          याचक सम जब तकिहँ नयना, 
         "अकिंचन" कहलइहँ इ नयना।।

 ✍️चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा 'अकिंचन" 

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