ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

भाग-3 नयना-चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"

भाग-3 नयना

एक आँख से देखिहं नयना,                            
  कउन भाव दरसइहं नयना। 
ललचइहं तिरिया क लोचन, 
कउन कामना करिहं नयना।।
        अनंग मृदंग बजावें जबि जबि,
         तिक धिना धिन नाचें इ नयना। 
         पलक तार झनिकावें इ नयना , 
         सगरो सरगम सधवावे इ नयना।। 
इंदु सिंधु उरि बइठा के इ नयना,
झलुआ अस पेंग बढ़ावें इ नयना। 
उमड़ि- घुमड़ि तड़िकावें  नयना,
बदरा के जइसन बरसें इ नयना ।। 
          अभिनय के जब मैदान उतरिहं,
          अभिनेतरी होई जइहं इ नयना।
           शिवजी क जब नेत्र बन जइहं, 
          तब तिरनेत्री कहलइहं इ नयना।।
कबहू थरमिस्टहि बन जइहं,
धरम पाठ पढ़वइहं इ नयना। 
कबहु बंद, खुल जइहं नयना, 
मउत जनम दरसइहं इ नयना।। 
              रिसि क चक्षु बनि जालं नयना, 
              ब्रम्ह कपाट खुलवावें इ नयना ।
              दक्ष अक्ष करि अंतर चक्षु के, इ
              प्रज्ञा क बोधि करवावें नयना ।।
दरस करवायें इ जीवन दरसन, 
अरनी -मंथन करवावें नयना । 
श्रुति मंत्रन अंकन लेखन करि, 
वेद व्यास कहवावें इ नयना।। 
         अक्ष अक्षर हⵢ , अजर अमर हⵢ,
         अज पथ लोचन भरि लावे नयना। 
          दृष्टि -वृष्टि अवलोकन सोधन से, 
         रिसिगन "मंत्र दृष्टार"कहावें नयना।।
 
✍️चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"

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