ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

समय -घायल परिंदा

प्रस्तुत है साहित्य की व्यंगात्मक चंद पंक्तियां।
मक्कारी की खाल ओढ़ कर विजय नहीं मिल पाएगी।
कागज के फूलों से कैसे हरियाली खिल जाएगी ।।
सिंह ,भेड़िया बन नहीं सकता यह कुदरत का खेल है ।
कीचड़ को गंगाजल कहना बहुत बड़ा बेमेल  है ।।

जल्दी बात देर से समझ कहां गधा कहां बैल है ।
ऊंट समझ ले खुद को ऊंचा कहां तुच्छ कहां शैल है।।
सच्चाई को दबा रहे हो कितना मन में मैल है।
सागर की लहरों को डटकर वापस करता शैल है।।

काहे परिंदा घायल ,सत्य पराजित हो नहीं सकता विजय कभी मिल जाएगी ।
बादल हो कितने गहरे पर सूर्य किरण खिल जाएगी ।।
मक्कारी की खाल ओढ़ कर विजय नहीं मिल पाएगी।
कागज के फूलों से कैसे हरियाली खिल जाएगी।।

 वंदे मातरम, जय हिंद ,भारत माता की जय।

 घायल परिंदा 

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