ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शीर्षक:-मुहब्बत'-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-मुहब्बत'

जा छोड़ दिया तेरी यादों को,
 आजाद किया ,
क्योंकि खुद पर पकड़ आ गयी है !
कमजोर नहीं मैं अब रही,
मुझमें अकड़ आ गयी है !

तेरे सोच से परे ,
क्या क्या चीजें छोड़ी है मैंने ,
कोई मलाल नहीं तेरे जाने का ,
पूर्ण विराम की जिन्दगी आ गयी है !
मुहब्बत करना हमारे बस में नहीं ,
लेकिन दूर चले जाना हमारे बस में था !

हदों में प्यार दुनिया करती ,
 बेहद मेरे दिल में था !
तेरी हो ना सकी ,कोई बात नहीं ,
साथ जी ना सकी, कोई मलाल नहीं, 
तेरे नाम पर यह जीवन लिख दिया है !
मुझे नशा है तुझे याद करने का,
और ये नशा सरेआम करती हूँ !

हर मोड़ पर टकरा जाते हो ,
मुस्कुराना खुलेआम करती हूँ! 
जिस्म नहीं माथा चूमा उसने,
मुझसे नहीं मेरी रूह से प्यार किया उसने!
नाराजगी में हमारी बात नहीं होती ,
पर दोनो तरफ यादों का,
सिलसिला भी  कम नहीं होती!

लगा दूरी में मुहब्बत खतम हो जायेगी ,
जो खतम हो जाए,
ओ मुहब्बत नहीं हुआ करती!
रूह को छूकर, जुदा होकर भी,
हर रोज उसी को चुनती हूँ ,
हाँ मैं खुद मुहब्बत हूँ, 
मुहब्बत से चलती हूँ, 
प्रेम एक शक्ति है जो ,
आपके लिए हर बंधन तोड सकती है,
पर स्वयम् किसी बंधन में नहीं बॅधती |

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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