शीर्षक:-सत्य राम कहॉं से लाऊँ?
दशानन रावण का अहम् हुंकार ,
विजय से पराजय गया हार,
पर यह तो त्रेतायुग की कहानी,
आज कलयुगी रावणों का ही है संसार,
छल-कपट,दम्भ दिखावट,
कौन हैं राम कौन है केवट?
क्रोध-दगेबाजी,कपटपूर्ण कलह का व्यापार,
अन्याय,अत्याचार,अनादर से भरा संसार,
वर्तमान रावण का अंत करने,
सत्य राम कहाँ से लाऊँ?
पग-पग पर भ्रष्टाचार सोने की लंका,
हनुमत की पूँछ से कैसे जलाऊँ?
हाँ, हर वर्ष विजयादशमी आती है,
नयी ऊर्जा जन-जन में भरती है,
नौ दिन देवी पूजी जाती ,
हर्षोल्लास से रामलीला खेला जाता,
फिर रावण को जलाया जाता है।
पर क्या रावण जल जाता है ??
मुझे तो जलाते रावण में दम्भी रावण नजर आता है,
जो पेपरो के मुख्य पृष्ठ के लिए,
असत्य जलाने का स्वांग रचता है ।
दुनिया का भोगी, जिस्म का लोभी
राम तो नहीं पर क्या रावण भी बन पाता है?
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई


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