🌈वैदिक धर्म के पुनरुद्धारक
जगद्गुरू शंकराचार्य
हे! धर्म ध्वजी,हे! धर्म के रक्षक, वैदिक धर्म के वेदम् -व्यासी।
हे! त्याग मूर्ति, हे! जननायक, राष्टृ-धर्म, उन्नायक सन्यासी।।
ऐ भारत भूमि के ऐक्य के कर्ता,सांस्कृतिक सूत्र संयोजक न्यासी।
आर्यजगत कर रहा नमन है, हो तेरे पद रज का अभिलाषी।।
बत्तीसवर्ष की अल्प आयु में, युग परिवर्तन कर चला प्रवासी।
नाम देश का अमर कर गये, हैं चहुंदिशि में बालक सन्यासी।।
तेरे पावन चरण के पड़ते, थे काँप गये मानवता संत्रासी।
कोटि, कोटि प्रणिपात है तेरा, कर रहे आज सब भारतवासी।।
अगणित कंठों से है प्रतिगुंजित, सभी कर रहे तेरा अभिनंदन।
सुगंधि तुम्हारे गाथा के फैले,दसो दिशा में मलयागिरि चंदन।।
चन्द्रगुप्त प्रसाद अकिंचन"बेनीगंज,
गोरखपुर चलभाष

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