न तुक, न ताल l
कवि कम लगते बेताल l
नाच न आवे आँगन रहे खूँद l
जैसे मुरब्बे पे जाहिल फफूँद l
नीयत में इनकी बेइमानी खोट l
अपनों की अस्मिता पर करते हैं चोट l
सुनकर के होते सभी लोटपोट l
तम्बा के फ़लान बिन नाड़े के लंगोट l
चार पैसे लगे क्या जबसे कमाने l
औकात भूले हैं अपनी फलाने l
आ गया उनको है इतना घमंड l
किसी को कभी भी बोल दें अंड-बंड l
खुद को लिया हाय! विश्व गुरु मान l
निज धर्म भाषा का नहीं जिन्हें ज्ञान l
मदमस्त हाथी से मद में हैं चूर l
मानव मनुजता से कोसों ये दूर l
लगता है मुझको गई भैंस पानी l
इनको तो कुल की है लुटिया डुबानी l
करते हैं दिन भर रमुआ, रमजानी l
भई छीछालेदर धरम की नसानी l
अभी भी समय छोड़ो अपने अहम को l
हैं श्रेष्ठ हम त्यागो ऐसे वहम को l
नहीं कुल धरम से बने कोई ज्ञानी l
हाय! अब तलक क्यों ये बातें बतानी l
भले नीले नभ पर लहर जाये झंडा l
घर घर में फहरे दुलारा तिरंगा l
है गर्व इस पर हमें और सबको l
मगर तुम बताना जी एक बात हमको l
अगर भूख से अब भी मरता मनुज है l
खुद कोठी बँगले, -बिलखता अनुज है l
पानी को तरसे पिता और माता l
कचरा बीन नौनिहाल रोटी जुटाता l
चीर वक्ष अपना है रोटी जो बोता l
बताओ अभी तक कृषक क्यों है रोता l
आये दीवाली बजे ढ़ोल ताशे
पोहकर के घर ना मयस्सर बताशे l
युवा जोश है काम को हाय! तरसे l
हाथों में फिरता लिये झंडे फरसे l
कोई हाथ कट्टा व धारे है चाकू l
सृजक जिनको बनना बने हैं लड़ाकू l
आपस में कैसे लड़े जा रहे हैं l
बिना कोई मतलब मरे जा रहे हैं l
उनकी है हसरत मगर सिर्फ पैसा l
बरबाद फ़सलें करें बनके भैंसा l
बड़ा हाल नाजुक है कुछ तो बिचारो l
रही डूब लुटिया इसे मिल उबारो l
अगर पेट अपना ही केवल भरोगे l
परमात्मा से न बिल्कुल डरोगे l
धरणी सहेगी कहो भार कब तक ?
सोचोगे ऐसा बताओ रे! कब तक ?
मंगल पे जीवन न ढूंढो सुहानी l
धरा पर हो मंगल लिखो वो कहानी l
धरा पर........
धर पर...............................l

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