ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

ज्ञानी से करुण पुकार-भारत प्रसाद प्रजापति शिक्षक सतना मध्यप्रदेश! !

कविता शीर्षक : ज्ञानी से करुण पुकार


जागो मेरे ज्ञानी ध्यानी करुण करतार
धरती का आंचल हो रहा
लहुलूहान! 
चहु ओर चित्कार सुनाई देती हैं 
बहसी और दरिद्रो की 
मैने जिधर निगाहे देखी है पत्तो की झुरमुट से लाचारों की आह सुनाई देती हैं! !
कहा सो रहा मेरे ज्ञानी करुण करतार
कब मन के मत वालो ने
उत्तम कर्म किया जो मन के
मरोरंजन मे ही डुबा दिया घर परिवार
कथा कथा न रही बन के रह गया 
मुम्बई का डान्स बार 
कथा कथा न रही बन कर रह गया व्यापार! 
यह एक धर्म की बाते नही हर धर्म मे रोग लगा अतिसार! 
कथानक बन रहे है आज इतिहास 
कबिरा की थोडी सुन लेते सब अंतरमन से! ! पर ज्ञान के ❓
सार को उडा रहे पयार की तरह
अब कैसे जगत में आए बयार  बसंत की तरह!!
ये मेरे ज्ञानी ध्यानी सुन लो करुण पुकार! !
शासन सत्ता के हरकारे सोये हुए है कुंभकरण की तरह 
अपराधियों के हौसले बुलंद है सीमा मे सैनिक की तरह !!
अब तो सच गबाही देने से डरता है !!
झूठा भरे चौराहो मे बाहे भरता है 
आदमी न्याय के लिए तरसता है 
मेरे ज्ञानी ध्यानी सुन लो करुण पुकार! !
बिना उत्तम साहित्य सृजन के नही मिटने वाला है यह अन्याय अत्याचार! !
मन के मतवाले प्याले मे ढुबा दिया है घर परिवार! !
जिसे देश के हरकारे कहते हो मेरी जी डि पी शराब पर निर्भर है 
भला उस देश मे अमन शांति का 
कैसे होगा पैगाम!!
ये मेरे ज्ञानी ध्यानी सुन लो करुण पुकार! !
कलम क्रांति का अब तो करो प्रहार!!
🙏🙏
भारत प्रसाद प्रजापति 
शिक्षक सतना मध्यप्रदेश! !

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