गीत नहीं अब ला पाऊंगा, प्रिय, प्रियतम की यादों से।
अब तो देश बचाना मुझको, छुपे हुए जल्लादों से।
खंड-खंड में बट जाते हैं।
लड़ते लड़ते सीमा पर।
उन्हें छोड़ कैसे मैं लिख दूं।
कविता , गीत रवीना पर
नदियां ऊपर से हैं निर्मल, लड़ना हमको गादों से।
अब तो देश बचाना मुझको, छुपे हुए जल्लादों से।
देशद्रोहियत कर है, खाता
कौन रोटियां दुश्मन की।
कौन बताता राह सभी को,
भारत के सीमा वन की।
कहीं लोग कुछ हट तो रहे न, पीछे अपने वादों से।
अब तो देश बचाना मुझको, छुपे हुए जल्लादों से।
देशभक्त सैनिक क्योंकर ही,
जंजीरों में गया जकड़।
आतंकी घूमा! तो कैसे?
पूरा भारत, बिना पकड़!
गाढ़े से कुछ भी ना खतरा, बचना हमको सादों से।
अब तो देश बचाना मुझको, छुपे हुए जल्लादों से।
बालकवि स्वप्निल शर्मा
मल्लावां ( हरदोई)

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