ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

धर्म का प्रभाव - प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-धर्म का प्रभाव ।

लड़ना ही क्या समाधान है?
धर्म को बचाने में ही सम्मान है ।

सच्चाई की जांति भूल गये हो ,
झूठे वजूद के लिए तूल गये हो ।

कतरे-कतरे में बंट रहा है धर्म ,
दिख नहीं रहा , माँ भारती का मर्म !

मानव; मानव पर कर रहा ज़ुल्म ,
सहयोग पर भी हो रहा है जुर्म !

मिथ्या धर्म पर सब हैं मुलाजिम ,
हर मानव बन पड़े हैं मुल्जिम !

अशान्ति फैलाकर घर को जलाते,
धर्म प्रभाव के आड़े हो जाते !

धर्म के व्यापारियों का दुकान अच्छा ,
धर्म को धर्म से लड़ाते, फटता बनियान कच्छा !

गर्व से अपना धर्म बताते,
दूसरों के धर्म पर सियासत करते कराते!

हाय कहाँ जा रहा है ईमान ,
भाई-भाई बन गये है बेईमान !

सम्भाल सको तो सम्भाल लो अभी ,
चाबी खोई नहीं है ताले की सभी! 

वरना सारा रुपया कौड़ी यहीं रह जाएगा,
अनर्थकारी प्रलय निश्चित ही आएगा |

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

Post a Comment

0 Comments