ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

सुखी रहने के सूत्र-प्रदीप छाजेड़ ( बोरावड़)

सुखी रहने के सूत्र
मेरे चिन्तन से यह कहूँ कि आज के समय में सुखी  रहने का सूत्र जो हर आदमी बोलता है वो यह है भौतिक साधनों की प्राप्ति ही उनको सुख-सुविधाओं की अनुभूति देंगे ।जबकि यह सही नहीं है क्योंकि घमंड और पेट जब ये दोनों बढ़ते हैं तब इन्सान चाह कर भी किसी को अपने गले नहीं लगा सकता हैं । जिस प्रकार नींबू के रस की एक बूंद हजारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है ठीक उसी प्रकार मनुष्य का अहंकार भी अच्छे से अच्छे संबंधों को बर्बाद कर देता है । अतः अक्सर ऊँचायों को छूने पर इंसान अपनी वास्तविक पहचान भूल जाते हैं और जिस दिन अहंकार हावी होता है तब सिवाए पतन के और कुछ हासिल नहीं होता हैं ।मन की लोभी तृष्णा का कोई अंत नहीं होता।जैसे-जैसे सोचा हुआ हाशिल होता है वैसे-वैसे और नयी चाहत बढ़ने लगती है।जिसका जीवन में कभी अंत ही नहीं होता।जीवन की इस आपा-धापी में जीवन के स्वर्णिम दिन कब बीत जाते हैं उसका हम्हें भान भी नहीं रहता हैं । आगे जीवन में कभी सपने अधूरे रह गये तो किसी के मुँह से यही निकलता है कि कास अमुक काम मैं अमुक समय कर लेता।उनके लिये बस बचता है तो किसी के कास तो किसी के जीवन में अगर।तृष्णा तो विश्व विजेता सिकंदर की कभी पूरी नहीं हुयी और जब विदा हुआ तो ख़ाली हाथ।इसलिये कर्म ज़रूर करो और जो कुछ प्राप्त हुआ उसमें संतोष करना सीखो।जीवन की इस भागम-भाग में आख़िरी साँस कौन सी होगी वो कोई नहीं जानता।जिसने जीवन में संतोष करना सीख लिया उसका जीवन आनंदमय बन गया।ये हैं कतिपय सुखी रहने के सूत्र, सुखी जीवन के मंत्र।

ओम् अर्हम सा !
 प्रदीप छाजेड़ 
( बोरावड़)

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