आओ कुछ नया करें
नव वर्ष की अंगड़ाई आज ठंडी सी पड़ने लगी है
फिर कलुषित विचार धारा मन में पनपने लगी है।
फिर जिंदगी में क्या रहा जब पुराने अंदाज
का ही हो रहा आगाज
यह मात्र कल क्या एक सुभ दिन था जब महफिलों में।
बड़े बूढ़े नौजवान मिला रहे थे जाम।।
नव वर्ष की अंगड़ाई आज ठंडी सी पड़ने लगी है
आओ कुछ नया करें।।
जहां ज्ञान विज्ञान की बातें हो
जहां समता मूलक कर्मों की सौगातें हो
जहां नहीं हो वर्ग भेद की खाई
जहां नहीं हो दहेज प्रथा की अंगड़ाई
जहां नहीं हो मणिपुर की परछाई
जहां बसी हो मन मन में,जन जन में नैतिक मूल्यों की सरसाई।।
नव वर्ष की अंगड़ाई आज ठंडी सी पड़ने लगी है..
फिर से कलुषित विचार धारा मन में पनपने लगी है।
फिर जिंदगी में क्या रहा है जब पुराने अंदाज का ही हो रहा है आगाज
फिर जिंदगी में नव वर्ष का क्या रहा चमत्कार जब रहना ही था जिंदगी में फिर से जाम , जुमला, जंग, जंगली, तकरार।।
आओ कुछ नया करें।।
नव वर्ष के नव प्रभात का जीवन में चरितार्थ करें..
जहां घर घर लहरें तीन रंग की तिरंगा प्यारा
जहां जन जन में हों भाईचारा
जहां घर घर हो संविधान का बोध जो है भारतीयों का दुलारा।।
जहां बहन बेटियां स्वतंत्र विचरण करें नदी घाट चौबारा।।
आओ कुछ नया करें
नव वर्ष की अंगड़ाई आज ठंडी सी पड़ने लगी है।।
फिर जिंदगी का क्या जब पुराने अंदाज
का ही हो रहा आगाज
फिर नव वर्ष क्या सिर्फ एक सुभ दिन था जब महफिलों में बड़े बूढ़े नौजवान मिला रहे थे जाम।।
आओ कुछ नया करें।। आओ कुछ नया करें।
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भारत दास " कौन्तेय " सतना मध्यप्रदेश
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