ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

अनुबन्ध-चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन "

अनुबन्ध ❤
प्रीति का नीति से कौन अनुबन्ध है, 
नीर का मीन से कौन सम्बन्ध है ? 
श्रोत पीयूष बहता जहाँ हो अथक, 
आचमन पर नहीं कोई प्रतिबन्ध है।

     तम निशा में कहो कौन अनुबन्ध है, 
     ज्योति का प्रात से कौन सम्बन्ध है? 
     रात भर रात रानी गमकती रहे-
     इस प्रहर का न उस पर प्रतिबन्ध है।

दाह का अग्नि से कौन अनुबन्ध है, 
स्नेह का दीप से कौन सम्बन्ध है? 
आज मिल लूँ गले सोचता है शलभ, 
वर्तिका से मिलन पर न प्रतिबन्ध है।

     हास का पुष्प से कौन अनुबन्ध है, 
     अलिकली का कहो कौन सम्बन्ध है? 
     आज बाहों में आओ है कहती सुमन, 
     मद भरे चुम्बनों पर न प्रतिबन्ध है ।

श्वाँस का प्राण से कौन अनुबन्ध है, 
रवि किरन का कहो कौन सम्बन्ध है? 
भावना के डगर पर न भटको प्रिये, 
दो हृदय के मिलन पर न प्रतिबन्ध है।

✍️चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन "

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