शीर्षक:-साथ खुद का देकर।
नारी जीवन बहुत कठिन,
परिश्रम का जीवन पर्यन्त बजता बीन,
कुछ करो तो कोलाहल,
ना करो तो कोहराम।
रूको तो शंका,
रूकने में असमर्थ,
बदनामी का बजता घण्टा।
निलय ना एक,
पर काम सब जहाँ का,
कैसे बयां करूॅ?
औरत होना दर्द कहाँ-कहाँ का?
बचपन से सुनना खरी-खोटी,
गुन एक ना अच्छा, जाओ बनाओ रोटी।
कानों की सहनशक्ति देखो,
पुरूष का धमकाना,कर दूंगा बोटी बोटी।
पर आखिर कब तक,हमें खूँटे से बांधा जायेगा?
बिना हमें सुने बस सुनाया जायेगा?
हमारी सक्षमता,कोई क्यूँ ना देख पाता है?
समर्पण; घर को दिन रात सजाता है।
प्रतिभा की पहचान करनी है तुमको,
खुद से बहुत लड़ाई लड़नी है तुमको ।
रूकावटें कालीन बनकर बिछी हैं राहों में,
साथ खुद का देकर,स्वंय को साबित करना है तुमको।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई


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