ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

सब पर लिखेंगे-आलोक अजनबी

सब पर लिखेंगे
ना मुक्तक में लिखेंगे, ना बहर में लिखेंगे।
दिल से उठने वाली हर लहर पे लिखेंगे।।
कोई नहीं है अपना ना रिश्ता है किसी से।
औपचारिकता से भरे ठहर पे लिखेंगे।।

फूलों सा था रिश्ता, मुरझा ही गया आखिर।
हम खुशबूओं की बातें, पतझड़ के शहर में लिखेंगे।।
गर्भ में ,झाड़ियों में, सूटकेसो में बेटियां।
देवियों पर हो रहे कहर पर लिखेंगे।।

लगनी लगी सुहानी, शामें तेरे शहर की।
तेरी प्रीत भरी बातें हम दोपहर में लिखेंगे।‌।
बो रहे हैं बीज कि फसलें पकेगी उनकी।
मंचों से उगले जा रहे जहर पे लिखेंगे।।

हर रंग की स्याही है, 'अजनबी' तेरी कलम में।
नफरत की आग, मोहब्बत की नहर पे लिखेंगे।।

© आलोक अजनबी

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