शीर्षक:-बहकाना
आप कसम की कसम खाये जा रहे है ,
मुहब्बत है तुमसे बताए जा रहे है ,
काश कि महसूस हम भी कर पाते ,
आप तो अपनी मुहब्बत के ही गुन गाये जा रहे है ।
शिकवा नहीं, ना शिकायत है तुमसे हमारा ,
दिल हार बैठे है इसलिए ना दूरी गवारा ,
तन्हाई का ओट लिए बस रोये जा रहे है ,
नाउम्मीद के धागे में प्रेम पिरोये जा रहे है।
कहते है --
तेरे अंजुमन में आकर बैठ गए है ,
जिस्म नहीं रूह तक फैल गए है ,
झगडे से प्रेम प्रताड़ित कर ,
प्रगाड़ता का गुहार लगाये जा रहे है ,
आप इश्क की क्या रीत निभा रहे है??
बहुत ज्यादा प्यार है तुमसे जानेमन ,
हर बार हमें बहकाये जा रहे |
(मौलिक,स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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