जिंदगी एक उलझी डोरी सी लगती है,
हर साँझ अधूरी भोर सी लगती है।
जहाँ साथ था तेरा, अब सन्नाटा है,
तेरी यादों का ही अब पहरा सा लगता है।
हर मोड़ पे तू, हर मोड़ पे हम थे,
अब मोड़ ही मोड़ हैं, पर संग हम न हैं।
धड़कनों की सदा भी अब फीकी लगती है,
तेरे बिना ये दुनिया अजनबी सी लगती है।
सपनों के रंग जो तूने दिखाए थे,
वो सब अब बस आंसुओं में बहाए हैं।
तेरा नाम लबों पर आते ही थम जाता हूँ,
पर टूटे दिल की आवाज़ से घबरा जाता हूँ।
कहाँ छुपा लिया खुद को तूने वक्त से,
हम आज भी ठहरे हैं उसी एक दृष्टि पे।
ना शिकायत है तुझसे, ना खुदा से कोई गिला,
बस वियोग में डूबी ये साँसे पूछती हैं — "क्यों भला?"
अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी
पूरनपुर पीलीभीत उत्तर प्रदेश
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