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सुख तो बस हरजाई है।-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

गुरुकुल अखण्ड भारत
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विधा:- गीत
शीर्षक:-सुख तो बस हरजाई है।
खुद से खुद मैं लड़ती रहती, 
सुख तो बस हरजाई है। 
बात-बात पर रोती रहती, 
जिद ही जिद को खाई है। 
लौटा दो मेरा बचपन तुम,
अल्हण-चंचलपन में आऊँ। 

नहीं सुहाती दुनिया मुझको, 
कैसे मैं प्रतिभा बन पाऊँ। 
 मतभेद विचारों में भरकर, 
घर -घर बैठी तनहाई है।
कैसे कहो, कहाँ मैं ढूंढू 
अलगाव वाद परछाई है। 
खुद से खुद मैं लडती रहती ।1।

नहीं सहारा कोई होगा, 
बेटा- बेटी जन्मे तुम ।
खाली हाथ ही जाना होगा, 
फिर भी मोह से मोहित तुम? 
मोहन-मोहन करते जाओ,
मोहन ही तेरा साईं है, 
कलयुग का जाप यही है,
जग जगन्नाथ समाई है ।
खुद से खुद मैं लडती रहती ।2।

राम अखिल ब्रह्मांड नायक, 
धरती पर मानुष बन जनमे।
जीत लिया माया को प्रभु ने,
मर्यादित बन बिचरे वन में ।
हनुमत जैसा सेवक बन लो, 
सीने में बिम्ब दिखाए हैं,
राम-नाम का सुमिरन कर लो, 
जन-जन में राम समाए हैं। 
खुद से खुद मैं लडती रहती।3।

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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