शीर्षक - छूट गया हूं कहीं ! ....
मैं बहुत सारा छूट गया हूं कहीं!
जो बचा हुआ है,
वो उतना मेरा नहीं,
जितना उसका है।
उसका मुझमें बच जाना,
मेरा उसमें रह जाना,
बचा रहा है-
हम दोनों को।
कितना कुछ छोड़ देते हैं हम!
कितना कुछ बचाने के लिए ...
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मुकेश चंचल
गड़वार, बलिया - यूपी०
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