#शीर्षक:-नमन-वंदन सब करते चलो।
जीने के कुछ उसूल भी जरूरी हैं,
उम्मीदें कहाँ सबकी यहां पूरी हैं?
चारों तरफ उठता शोर अपनों का है,
अपनों में ढूंढना अपनापन मजबूरी है।
तल्लीनता से जीवन जीने का सलीका,
दूसरे के मथ्थे देते गलतियों का ठीका।
दामन उम्मीद का कब तक कोई थामें?
क्यों कोई नहीं भरोसेमंद यहाँ किसी का?
आशा की गांठ अपने खूँटे बांध लिया,
रोकथाम की चादर शरीर पर साट लिया।
अब परवाह नहीं,ना आहत किसी बात पर
जो चल रहा संग-साथ, संगम सा बना लिया।
सभी को नमन वंदन सब करते चलो,
जहाँ में जहां जो भी मिले; लपेटते चलो ।
कल के चक्कर में हम बहुत दूर पहुंच चुके हैं,
स्वर्ग से अभी बस थोड़ी और दूरी है चलते चलो।
(स्वरचित,मौलिक)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
जीने के कुछ उसूल भी जरूरी हैं,
उम्मीदें कहाँ सबकी यहां पूरी हैं?
चारों तरफ उठता शोर अपनों का है,
अपनों में ढूंढना अपनापन मजबूरी है।
तल्लीनता से जीवन जीने का सलीका,
दूसरे के मथ्थे देते गलतियों का ठीका।
दामन उम्मीद का कब तक कोई थामें?
क्यों कोई नहीं भरोसेमंद यहाँ किसी का?
आशा की गांठ अपने खूँटे बांध लिया,
रोकथाम की चादर शरीर पर साट लिया।
अब परवाह नहीं,ना आहत किसी बात पर
जो चल रहा संग-साथ, संगम सा बना लिया।
सभी को नमन वंदन सब करते चलो,
जहाँ में जहां जो भी मिले; लपेटते चलो ।
कल के चक्कर में हम बहुत दूर पहुंच चुके हैं,
स्वर्ग से अभी बस थोड़ी और दूरी है चलते चलो।
(स्वरचित,मौलिक)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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कविता