माँ दुर्गा का प्रथम रूप
जय माँ शैल पुत्री।
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तुम ही हो माँ वृषारूढ़ा,
माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप।
आदि शक्ति हो नारी का,
तुम हो ममता का रूप।
प्रजापति ने जब यज्ञ किया,
छोड़ हमारे शिव जी को,
सब देवगढ़ बुलवाये।
माँ सती ने देखा जब पिता के घर,
अनेक देवगढ़ थे आये।
मन सती का प्रबल हो उठा,
शिव जी रोक न पाए।
माँ सती पहुंची जब यज्ञ में,
माँ प्रसूती का मन हर्षाये।
देख सती को पिता और बहिन ने,
व्यंग कर उपहास उड़ाया।
त्तिरष्कार कर शिव जी का भी,
प्रजापति ने खूब अपमान कराया।
पति का अपमान सहन न कर सकी,
खुद को स्वाह कराया।
देख सती को भष्म हुआ,
क्रोध भोले का रुक न पाया।
दारूण दुख में व्यथित हृदय से,
शिव जी ने यज्ञ विध्वंस कराया।
शैल हिमालय के घर पुनर्जन्म दे,
फिर से इतिहास रचाया।
शैल पिता हिमालय के नाम पर ही,
माँ शैल पुत्री कहलायीं।
कर तपस्या शिव जी की,
अर्धांगनी बन फिर आयीं।
विवाह उपरांत पार्वती बन,
ममता बरसाने आयीं।
धर प्रकृति का रूप माँ ,
हमको संभालने आयी
स्वरचित
कंचन मिश्रा