ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

........... नीयत

........... नीयत....... 

ऐ खुदा!
ना हि कोई गिला तुझसे  
ना ही कोई सवाल
क्यो नहीं मिला वह
इसका नहीं मलाल

ऐं खुदा! 
रिश्तों को नये सजाते ऐसे
सजी हो रंगोली सितारों की जैसे
खेलते खेल जज्बातों के संग
हो जाते रंग वही फिर बदरंग
पड़ जाते फीके रंग मेहंदी के
उछल जाते सिक्के चंद चांदी के

बिखर जाती खुशियाँ सारी
पल भर की सजती दुनियाँ सारी
ऐसे रिश्ते बेजान चाहत के
जहाँ चमकते हों टुकड़े कागज के 

ऐ खुदा!
क्या इन्हे हि इंसान कहा जाता  
सजदे भी करके झूठें आंसू बहाता
जनाजे के अश्क मे भी वफादारी नहीं
नीयत मे हैं खोट भरे हुए
रूह भी लगती प्यारी नहीं
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नौशाबा जिलानी सुरिया

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