ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

सत्ता की बागडोर निजीकरण की ओर

सत्ता की बागडोर निजीकरण की ओर

सत्ता की बागडोर निजीकरण की ओर ले जाने का मतलब है कि सरकारें सार्वजनिक क्षेत्रों और संसाधनों को निजी कंपनियों या व्यक्तियों को सौंपने की प्रक्रिया को बढ़ावा दे रही हैं। यह नीति आमतौर पर आर्थिक सुधारों, प्रतिस्पर्धा बढ़ाने और कार्यक्षमता में सुधार के नाम पर अपनाई जाती है। 
निजीकरण के संभावित फायदे:
  • कार्यकुशलता में वृद्धि: निजी क्षेत्र में लाभ कमाने की प्राथमिकता के कारण संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है।
  • निवेश का बढ़ाव: निजीकरण से अधिक निवेश आ सकता है, जिससे आर्थिक विकास तेज हो सकता है।
  • सार्वजनिक सेवाओं में सुधार: प्रतिस्पर्धा के चलते सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
निजीकरण के संभावित नुकसान:
  • सामाजिक असमानता: ज़रूरी सेवाओं (जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा) का महंगा होना गरीब वर्गों के लिए कठिनाई बढ़ा सकता है।
  • सार्वजनिक हितों की अनदेखी: निजी कंपनियां लाभ को प्राथमिकता देती हैं, जिससे आम लोगों की जरूरतें पीछे छूट सकती हैं।
निजीकरण से सार्वजनिक हितों की अनदेखी एक प्रमुख चिंता का विषय है। जब सार्वजनिक संसाधनों और सेवाओं को निजी क्षेत्र को सौंपा जाता है, तो उनकी प्राथमिकता लाभ कमाना हो जाती है, जिससे समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से कमजोर और वंचित वर्गों, की जरूरतों की उपेक्षा हो सकती है।
सार्वजनिक हितों की अनदेखी के कारण:
         मुनाफे की प्राथमिकता:
  • निजी कंपनियों का मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है।
  • इसके कारण वे उन सेवाओं और क्षेत्रों में निवेश करने से बचती हैं जहां मुनाफा कम है, भले ही वहां सेवाओं की आवश्यकता अधिक हो |
गरीब और वंचित वर्गों की उपेक्षा:
  • स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन जैसी सेवाओं का निजीकरण होने पर गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को उचित सुविधाएं नहीं मिल पातीं।
  • उदाहरण के लिए, निजी अस्पताल गरीब मरीजों का इलाज करने से कतराते हैं क्योंकि वे अधिक मुनाफा कमाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
सामाजिक असमानता का बढ़ना:
  • निजीकरण के बाद सेवाएं केवल उन लोगों तक सीमित हो जाती हैं जो उनकी कीमत चुका सकते हैं।
  • इससे समाज में आर्थिक और सामाजिक असमानता बढ़ती है।
ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की अनदेखी:
  • निजी कंपनियां शहरी और लाभदायक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
  • ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में सुविधाएं सीमित हो जाती हैं, जिससे वहां विकास प्रभावित होता है।
ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की अनदेखी:
  • निजी कंपनियां शहरी और लाभदायक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
  • ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में सुविधाएं सीमित हो जाती हैं, जिससे वहां विकास प्रभावित होता है।
सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में गिराव:
  • निजी कंपनियां लागत घटाने और मुनाफा बढ़ाने के लिए सेवाओं की गुणवत्ता में कटौती कर सकती हैं।
  • इसके कारण शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है।
आवश्यक सेवाओं की कीमतों में वृद्धि:
  • निजीकरण के बाद, पानी, बिजली, शिक्षा और परिवहन जैसी बुनियादी सेवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।
  • यह निम्न आय वर्ग के लोगों को इन सेवाओं से वंचित कर सकता है।
सार्वजनिक भागीदारी की कमी:
  • निजी क्षेत्र के फैसले आमतौर पर जनता की भागीदारी के बिना किए जाते हैं।
  • इससे यह सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है कि निर्णय जनता के हित में हो रहे हैं।
संवेदनशील सेवाओं का जोखिम:
  • रक्षा, जल आपूर्ति, और ऊर्जा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों का निजीकरण राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक हितों के लिए खतरा बन सकता है।
  • रोज़गार पर प्रभाव: निजीकरण के कारण सरकारी नौकरियां कम हो सकती हैं, जिससे बेरोजगारी बढ़ सकती है।
जनता पर प्रभाव:
  • आर्थिक असुरक्षा: अगर सेवाएं केवल आर्थिक क्षमता के आधार पर उपलब्ध हों, तो गरीब वर्ग इससे वंचित हो सकते हैं।
  • आर्थिक असुरक्षा का मतलब है कि जब सरकारी सेवाओं और संसाधनों को निजी हाथों में सौंप दिया जाता है, तो इसका नकारात्मक प्रभाव समाज के उन वर्गों पर पड़ सकता है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। यह असुरक्षा कई कारणों से बढ़ती है:
1. आवश्यक सेवाओं की महंगाई
  • A. जब सार्वजनिक सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, बिजली आदि का निजीकरण किया जाता है, तो इन सेवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।  
  • B. निजी कंपनियां मुनाफे पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के लोग इन सेवाओं का खर्च उठाने में असमर्थ हो सकते हैं।
2. रोज़गार में कमी:
  • सरकारी संस्थानों में रोजगार अधिक सुरक्षित और स्थायी होता है।  
  • निजीकरण के बाद निजी कंपनियां लागत घटाने के लिए कर्मचारियों की संख्या कम कर सकती हैं,  जिससे बेरोजगारी बढ़ सकती है।  
  • अनुबंध आधारित और अस्थायी नौकरियों का चलन बढ़ता है, जो स्थायी रोजगार की सुरक्षा प्रदान नहीं करतीं।
3. सामाजिक सुरक्षा का अभाव:
  •  सरकारी संस्थानों में पेंशन, चिकित्सा सुविधा और अन्य लाभ मिलते हैं।  
  • निजी क्षेत्रों में ये लाभ सीमित या बिल्कुल नहीं होते, जिससे कर्मचारियों की भविष्य की सुरक्षा कम हो जाती है।
4. ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की अनदेखी:
  • निजी कंपनियां अक्सर केवल उन क्षेत्रों में काम करना चाहती हैं, जहां उन्हें अधिक मुनाफा मिले
  • इस कारण से ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में सेवाएं या तो पूरी तरह से बंद हो जाती हैं या उनकी गुणवत्ता खराब हो जाती है।
5. मूलभूत सेवाओं की पहुंच में बाधा:
  • निजीकरण के बाद पानी, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाएं भी लाभ का साधन बन जाती हैं।  
  • इससे गरीब तबका इन सेवाओं का उपयोग करने में असमर्थ हो जाता है, जिससे उनके जीवन स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
6. मूल्य वृद्धि और मुद्रास्फीति:
  • निजीकरण के बाद एकाधिकार (monopoly) की स्थिति बन सकती है।  
  • निजी कंपनियां अपनी मर्जी से कीमतें बढ़ा सकती हैं, जिससे मुद्रास्फीति और आर्थिक असुरक्षा में इजाफा होता है।
        निजीकरण से आर्थिक असुरक्षा तब बढ़ती है, जब मुनाफे को प्राथमिकता दी जाती है और समाज के कमजोर वर्गों की जरूरतों को नजरअंदाज किया जाता है। इसे संतुलित और नियोजित तरीके से लागू करना आवश्यक है, ताकि आर्थिक असुरक्षा को रोका जा सके और सभी वर्गों को समान रूप से लाभ मिल सके।
निगरानी की कमी: निजी संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण कम होने से पारदर्शिता में कमी आ सकती है। निजीकरण से निगरानी में कमी एक गंभीर मुद्दा है। जब सरकारी संस्थानों और सेवाओं को निजी कंपनियों को सौंपा जाता है, तो उनके संचालन और निर्णयों पर सरकारी और सार्वजनिक नियंत्रण कम हो जाता है। इससे कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं:

1. पारदर्शिता की कमी:
  • सरकारी संस्थान जनता और कानून के प्रति जवाबदेह होते हैं। उनके फैसलों और खर्चों की जानकारी आम लोगों को उपलब्ध होती है।  
  • निजी कंपनियां अपने संचालन में पारदर्शिता की कमी रखती हैं क्योंकि वे व्यावसायिक गोपनीयता (Business Secrecy) का दावा करती हैं।  
  • यह जनता को यह जानने से वंचित कर देता है कि सेवाओं या संसाधनों का प्रबंधन कैसे हो रहा है।
2. सार्वजनिक जवाबदेही में कमी:
  • सरकार को अपने काम के लिए जनता और संसद के प्रति जवाबदेह रहना पड़ता है।  
  • निजी कंपनियां केवल अपने शेयरधारकों या मालिकों के प्रति जवाबदेह होती हैं, न कि जनता के प्रति।  
  • इससे जनता के हितों की अनदेखी हो सकती है।
3. लाभ प्राथमिकता बनाम सार्वजनिक हित:
  • सरकारी संस्थान आमतौर पर समाज के कल्याण और सार्वजनिक हित को प्राथमिकता देते हैं।  
  • निजी कंपनियां मुनाफा कमाने को प्राथमिकता देती हैं, जिससे वे अक्सर उन क्षेत्रों को नजरअंदाज कर देती हैं जहां लाभ कम होता है, भले ही वहां सेवाओं की आवश्यकता अधिक हो।  
4. निगरानी और नियमन में ढील:
  • निजीकरण के बाद सरकार का रोल केवल एक नियामक (Regulator) का रह जाता है।  
  • लेकिन नियामक संस्थाओं के पास अक्सर सीमित संसाधन और अधिकार होते हैं, जिससे निजी कंपनियों की गतिविधियों की सख्ती से निगरानी करना मुश्किल हो जाता है।  
5. एकाधिकार और शोषण का खतरा:
  • निजीकरण के बाद कुछ कंपनियां बाजार पर एकाधिकार जमा सकती हैं।  
  • ऐसे में कीमतों में अनुचित वृद्धि या सेवाओं की गुणवत्ता में गिरावट की संभावना बढ़ जाती है।  
  • सरकार इन पर पर्याप्त निगरानी नहीं रख पाती, जिससे उपभोक्ताओं का नुकसान होता है।
6. समाज के कमजोर वर्गों की अनदेखी:
  • निजी कंपनियां आमतौर पर मुनाफा बढ़ाने के लिए शहरी और संपन्न क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।  
  • ग्रामीण और गरीब तबकों की जरूरतों की निगरानी और सेवा वितरण में कमी आ सकती है।
7. भ्रष्टाचार का खतरा:
  • निजी कंपनियों और सरकारी अधिकारियों के बीच मिलीभगत हो सकती है, जिससे नीतिगत फैसले पक्षपातपूर्ण हो सकते हैं।  
  • सरकार की कमजोर निगरानी से यह भ्रष्टाचार और बढ़ सकता है।
        निजीकरण के बाद सेवाओं और संसाधनों पर सरकारी और सार्वजनिक निगरानी कमजोर हो जाती है। यह पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक हित के सिद्धांतों को कमजोर कर सकता है।  
इसलिए, यदि निजीकरण करना हो, तो इसे कड़े नियामक ढांचे और प्रभावी निगरानी व्यवस्था के साथ लागू करना चाहिए, ताकि जनता के अधिकारों और जरूरतों की अनदेखी न हो। सत्ता की बागडोर निजीकरण की ओर ले जाना, यदि संतुलित और पारदर्शी तरीके से किया जाए, तो यह देश के आर्थिक विकास में योगदान दे सकता है। लेकिन यदि यह केवल मुनाफा कमाने के उद्देश्य से किया जाए, तो इससे सामाजिक असंतुलन और आर्थिक असमानता बढ़ सकती है।

लेखक के विचार 
अनुज प्रताप सिंह सूर्यवंशी
पूरनपुर, पीलीभीत (उoप्रo)
अध्यक्ष गुरूकुल अखण्ड भारत


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