भूमिका :- योग का अर्थ योग जीवन जीने की कला एवं विज्ञान है| जिसका संबंध मन और शरीर की भावना से है | इसीलिए योग व्यक्ति में अनुशासन प्रणाली को बढ़ाता है, और व्यक्ति के सभी पक्षों को विकसित करके आगे बढ़ाता है| श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार योग:- कर्मसु कौशलम् अर्थात निपुणता के साथ कौशल की क्रिया का होना योग है| जहां तक हो सके अभ्यास शरीर की निपुणता को बढ़ाता है योग में तकनीकी भी शामिल है | जो तुम्हारे मस्तिष्क और भावनाओं पर कार्य करती है , और जीने के लिए पूर्ण दर्शन प्रदान करती है | इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तुम्हें जीवन के सभी पहलुओं में निपुणता प्राप्त करनी जरूरी है योग खुशी और अच्छाई की कुंजी है | आज के युग में चिकित्सा विज्ञान की कई शताब्दियों की महान उन्नति से शारीरिक रोगों की घटनाओं को बहुत कम कर दिया है | जो शताब्दियों से मानव को लगती हो अच्छी औषधियों और चीर फाड़ की पद्धतियों से बहुत से संक्रामक रोगों को जड़ से उखाड़ दिया है, और बहुत सी अ मापक क्रियाओं पर नियंत्रण किया है | योग चिकित्सा प्राचीन भारतीय रीति-रिवाजों और विश्वासों पर मनुष्य के अस्तित्व पर आधारित है विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है | कि योग अभ्यास का सकारात्मक स्वास्थ्य मानसिक स्वास्थ्य कार्डियो स्वसन की निपुणता के सुधार तनाव के लिए स्वता हा प्रतिक्रिया निद्रा मांस पेशी सहनशीलता और उच्च मस्तिष्क के कार्य आदि को बढ़ावा देने में निश्चित भूमिका निभाते हैं | आजकल जीवन की गति भी तेजी से बढ़ने में तनाव से संबंधित रोगों में बढ़ावा होता रहता है | योगा से ऐसे लोगों के उपचार के लिए नियंत्रित यत्न किए गए हैं योग की भारत की महत्वपूर्ण मूल्यवान विरासत के रूप में पहचान की गई है |
योग का अर्थ
योगेश शारीरिक मानसिक अध्यात्मिक अभ्यास का विषय है जिसकी उत्पत्ति प्राचीन भारत में मन की स्थाई शांति की अवस्था प्राप्त करने के लिए हुई है ताकि वह आत्मकथ्य को अनुभव कर सके योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द यूज से हुई है जिसका अर्थ है मिलना जोड़ना तथा पास लाना किसी व्यक्ति के ध्यान को केंद्रित करने के लिए लोगों का इस्तेमाल किया जाता है अर्थात व्यक्ति की आत्मा को परमात्मा से मिलाने सा साधन योग मनुष्य की चेतना को विकसित करने का विज्ञान है वह आत्मा का परमात्मा के साथ मिलन है इस प्रकार योग शरीर की सभी शक्तियों और मन का परमात्मा से मिलन है यह बौद्धिकता मनभावन इच्छा का अनुशासन ई करण तथा कल्याण योग पहले से ही करता है भारतीय विचार में प्रत्येक वस्तु सर्वोच्च सर्वव्यापक आत्मा द्वारा बनाई गई है जिसका मानवीय आत्मा अर्थात जीवात्मा का एक हिस्सा है योग की प्रणाली को योग इस कारण कहा जाता है क्योंकि यह मिलन के बारे में बताती है जिससे कि आत्मा को परमात्मा के साथ मिलाया जा सकता है तथा मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है|
योग की परिभाषाएं
1. भगवान श्री कृष्ण ने गीता में लिखा है- योग कर्मसु कौशलम् अर्थात निपुणता के साथ कौशल की क्रियाओं का होना योग है |
2. पतंजलि ऋषि कहते हैं- मन के विचारों को रोकना योग है |
3. शंकराचार्य जी कहते हैं - योग ज्ञानेंद्रियों का संसार इक वस्तुओं से वापसी है और जिन का नियंत्रण योग के ही द्वारा होता है |
4. वेदव्यास जी लिखते हैं योग आत्मा और परमात्मा का मिलन है|
स्वामी दिगंबर जी के अनुसार योग आत्मा और परमात्मा का मिलन है|
5. स्वामी संपूर्णानंद जी के अनुसार योग एक अध्यात्मिक कामधेनु है जो हमारी आकांक्षा पूर्ण करती है |
6. उपनिषद के अनुसार योग एक व्यक्ति का आत्मा का परमात्मा से मिलन है अगम जी कहते हैं शिव और शक्ति से ऊपर का ज्ञान योग है |
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