भीष्म पितामह--
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पिता को मैंने दिया वचन,
हस्तिनापुर नहीं छोडूंगा,
हे वासुदेव कुछ भी करलो,
प्रतिज्ञा नहीं मै तोड़ूंगा।
मै न्याय के अब भी साथ खड़ा,
तो कैसे बुरा बताते हो,
मुझे कहते हो युद्ध को छोड़ दूं मै,
ये कैसा पाठ पढ़ाते हो।
मै जब तक जिंदा हूं हे कृष्णा,
जीत तुम्हारी मुश्किल है,
तुम स्वप्न ना देखो जीतोगे,
क्युकी जीत तो मेरी मंजिल है।
पांडव पिछे हटे नहीं,
तो उनका काल बनूंगा मै,
हस्तिनापुर तब तक होगा,
जब तक ढाल बनूंगा मै।
और तुम्हे पता है हे माधव,
इच्छा मृत्यु का वरदान मुझे,
पिता ने मुझको दिया है केशव,
एक रूप में अभयदान मुझे।
जब तक मेरी सांसे है,
तब तक क्षमता है लड़ने का,
तुम भी ना ही कुछ कर सकते,
वरदान मुझे ना मरने का।
कृष्णा ने कहा-
भूल गए हे पितामह,
मै कुछ भी कर सकता हूं,
अमर अगर अन्याय करे,
मृत्यु देने की शक्ति रखता हूं।
खुद को न्याय प्रिय बतलाते,
तनिक भी शर्म नहीं आई,
जिस दिन भरे राज दरबार में,
एक अब्ला चीखी चिल्लाई,
राजमहल में बाबा जिस दिन,
नारी का अपमान हुआ,
उस दिन काम ना आया तो,
कैसा ये वरदान हुआ।
वरदान की शक्ति तभी दिखाते,
न्याय प्रिय यदि बनना था,
लाखो पुण्य को धो डाला,
आपके एक पाप का गणना था,
मौन खड़े थे उस दिन बाबा,
क्या यही धर्म सीखलाता है,
कितना न्याय के साथ हो आप,
यही कर्म दिखलाता है।
आज यहां पे कुरुक्षेत्र में,
खुदको रक्षक बतलाते हो,
जिन पांडव के साथ मै स्वयं खड़ा,
खुदको उनका भक्षक बतलाते हो,
अब बाबा ये नहीं है विनती,
तुम्हे चेता मै देता हूं,
वरदान विफल कर दूंगा बाबा,
तुम्हे बता मै देता हूं।
क्या भूल गए कि कौन हूं मै,
फिर से याद दिलाउं क्या,
जंजीर बढ़ाया था जिस दिन,
फिर वही रूप दिखाऊं क्या।
बाबा जिंदा हो मेरे से,
तो मौत भी मैं बन सकता हूं,
अमर को भी मै मौत दिला दूं,
इतनी ताकत रखता हूं।
शस्त्र को त्यागो हे बाबा,
वरना चक्र उठाना ही होगा,
प्रतिज्ञा बाद में देखूंगा पहले,
धर्म बचाना ही होगा।
माधव का रौद्र रूप देखा तो
पितामह शस्त्र गिराए थे,
लगता था केवल पुण्य किया है,
माधव ने पाप गिनाए थे।
अन्तिम वक्त में कुरुकुल रक्षक,
अपने पापो से आजाद हुए,
जब भीष्म ने आत्मसमर्पण किया,
तो कौरव बर्बाद हुए।
- आदित्य कुमार
" बाल कवि "
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