बुढ़ापे का दर्द

ठहरा हूं मैं औऱ अकेला भी हूं।
सुना सा है मन और खामोश भी हूं।
जीवन की इस अंतिम छोर पर,
शून्य सा हूं मैं औऱ वीरान भी हूं।।
उम्र बीत गई सारी अब आराम की बारी आई है।
झुकी कमर,त्वचा झुर्रियों संग जर्जरता लाई है।
कराहती ये काया अब दर्द से मेरी,
समय का पहिया है शायद अब अंतिम घड़ी आई है।
जब दर्द से बोझिल हो जाऊं आंखे अश्रु से नहाई है।
मन का दर्द किसे बताऊं बस यही उदासी छाई है।
सफर मेरा पीछे रह गया रास्ते भी बंद से है,
अब तो हरदम साथ मेरे मैं औऱ मेरी तन्हाई है।
गया वक़्त अब सदा गतिमान रहने का,
अब आ गया समय धैर्यवान रहने का,
अब दौड़ा नहीं जाता ज़िन्दगी की दौड़ में,
अब उगते सूरज सा नहीं,मैं हूं ढलती साँझ सा।
अब ठीक से सुना नहीं जाता ना बोल पाता हूं।
मोहताज़ भरी ज़िंदगी में ढंग से जी भी नहीं पाता हूं।
निर्झर अश्रु बहते है अब कई बार मेरे,
प्यारा है परिवार मेरा तो भी खुद को अकेला पाता हूं।
फिर भी कृतज्ञ हूं ईश्वर का जिसने
ये दुनियां रचाई है।
जीवन जीया शान से अब तक बस
ये बुढापा दुखदाई है।
जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु भी तय है,
इसी विधान से प्रभु ने ये सुंदर दुनियां रचाई है।।
✍️-प्रियंका सिंह
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