
उम्र का अंतिम पड़ाव.
ज्ञान और अनुभव का
सुंदर यह बही खाता
पर एकाकी क्यों बुढापा
अपनो को ये तरसाता
न भोर नयी लगती है
न सुहानी लगती संध्या
कैसा पड़ाव जिंदगी का।
जाना इक दिन सबको
कौन यहां रह जाता ।
ज्यों ज्यों जाने का दिन
करीब आता बेसाख्ता
रिश्तों से मोह बढ़ता
सब छूट जाने का ख्याल
मन में बार बार आता।
शामो सहर बतियाने
दिल किसी को भी ढूंढता।
पर हाय रात बैचेन
दवाओं से ही अपनापा।
उम्र पूरी गुजार लिया ,
जब सारे संघर्ष झेला
रिश्ते तेरे खुशियां सारे
बटोर बटोही बावरा
क्यों करता है पछतावा
अभी तो जीने का ही बस
असल समय ये आता ।
प्रभु भजन में जी लगा
संग यारों के लगा रोज़
जमकर मस्त ठहाका ।
किसी के तानो की बिल्कुल
रे न कर तू परवाह ।
जो है मर्जी कर, करवा।
ओ हाथ थाम ले साथी का ।
चल न साथ बजरिया
नाती पोते तो तेरे प्यारे ,
संग संग नाच और गा।
न किसी कि धौंस सहना
सबकुछ तूने तो जोड़ा
रिश्ते नाते धन दौलत
सब यहीं छोड़ है जाना
कमर झुक गई पर
स्वाभिमान न छोड़ना ।
बोल ऐसा क्या हुआ कि
मन ही मन अब रोया।
जब तक सांस रहेगी
तब तक आस पलेगी
जग को सदैव तूने ही
बरसों बरस सीखाया ।
आशाओं के दीप स्वर्णिम
हरदम पहले भी तूने
पग पग पर जलाया।
अब भी उस दीप को यूं
किसी हाल बुझने न दे
किसी ने तेरी राह में भी
पुष्प अनगिनत बिछाया,
सुन अंतहीन ये यात्रा।
व्यर्थ बातें सोच सोच
ना हो वक्त कीमती जाया।
✍️ - प्रीति प्रधान।
(सभी सीनियर सिटीजन को सादर समर्पित
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