ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

कभी सूरत नहीं मिलती, कभी सीरत नहीं मिलती


कभी सूरत नहीं मिलती, कभी सीरत नहीं मिलती
तसव्वुर में जो मेरे है, कहीं ज़ीनत नही मिलती

मिले सब खूबियां यारों, किसी इक मह-जबीं में तो 
करें क्या उससे अपनी जो, अगर तबियत नहीं मिलती

हमारे दरमियां समझो, बड़े ही फासले हैं अब
मेरे हालात से ज़ाना, तेरी जन्नत नही मिलती

सुना था दुनिया से लड़कर, मुहब्बत लोग कुछ पाते 
किताबी बात सब इतनी, कहीं जुर्रत नही मिलती

बड़ा मुश्किल मुलाज़िम को, नए यूं ढूंढकर रखना
हुनर मिल जाय गर अच्छा, सही नीयत नही मिलती

खुदा पाते जो सत्ता में, वो रहबर बनते जनता के
खुदा के उन ही बंदों के, लिए फुरसत नहीं मिलती

मुहब्बत वक्त दौलत और, मिले सेहत सभी कुछ साथ
किसी इंसा को तो ऐसी, कभी किस्मत नही मिलती

मिले हैं चार दिन हमको, खुशी से ज़िंदगी लें जी
मिले इक बार बस सबको, ये फिर नेमत नही मिलती

                                   ✍️तरुण जैन (स्वरचित)

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