खबर माल बन रही इश्तहार के पीछे
बखूबी दुकान चल रही अखबार के पीछे
पहले हुई पीली फिर काली हुई खबर
अब रह गई है सुर्खियां सरकार के पीछे
हालत बिगड़ती ही गई जितनी दवा खाई
धंधा चल रहा इलाज का बीमार के पीछे
वो शख्स सियासी है भरी जेब है जिसकी
नौ मूर्ख पड़े है तन्हा समझदार के पीछे
फिदा हुए जो लोग उसकी शोख अदा पर
बन के फ़कीर खड़े है गुनहगार के पीछे
यू ही तो भगत सिंह याद आते नहीं "सरल"
कोई सोच महकती है उस किरदार के पीछे
कवि सरल कुमार वर्मा
उन्नाव, यूपी
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