मतला
आग पे हम खड़े हो गये,
पांव में आबले हो गये ।
अश्आर

देख लो सांवले हो गये।
कुछ कहा भी नहीं दोस्तों,
खामखां हम बुरे हो गये।
गैरों के साथ में देखकर,
जख्म फिर से हरे हो गये।

तब से हम बावले हो गये।
लब खिले हैं कंवल की तरह,
गम अभी अनछुए हो गये।
तू गया है सनम छोड़कर,
याद में सिरफिरे हो गये।
वो छुपाते रहे हुश्न को,
फिर भी चर्चे बडे़ हो गये।
मक्ता
याद पिंकी रखेगी सदा, कवियित्री
दरमियाँ फासले हो गये।। पिंकी अरविंद प्रजापति
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