ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

पथिक निरन्तर बढ़ता चल-डाॅ०त्रिलोकी सिंह

पथिक! सोच, अपने जीवन में,
तूने क्या खोया,क्या पाया ?
कर्म-विमुख होकर जीवन का,
समय व्यर्थ में क्यों खोता है?
बार-बार की असफलता से ,
आखिर क्यों उदास होता है?
कभी आत्मचिंतन तू कर ले,
तूने कितना समय गँवाया।
पथिक, सोच अपने जीवन में,
तूने क्या खोया,क्या पाया? 1 ।।
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अंधकार का भेदन करके ,
जब प्रकाश की ओर बढ़ेगा ।
तब तेरे अच्छे कर्मों से ,
तेरा यह जीवन महकेगा ।।
तभी सार्थक होगा जीवन,
होगी सफल तभी यह काया।
पथिक!सोच,अपने जीवन में,
तूने क्या खोया,क्या पाया ? 2।।
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यह विचारकर उठ जा राही,
मंजिल तक तुझको जाना है।
मन में दृढ़ संकल्प आज कर,
लक्ष्य तुझे अपना पाना है ।।
बेशक मंजिल पा जाएगा ,
अगर न पीछे कदम हटाया।
पथिक!सोच,अपने जीवन में,
तूने क्या खोया,क्या पाया? 3।।
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तो फिर त्याग प्रमाद इसी क्षण,
बिना रुके आगे बढ़ता चल ।
लड़-लड़ कर झंझावातों से,
कर उपयोग समय का पल-पल ।।
सचमुच तेरी कीर्ति बढ़ेगी,
यदि तूने निज धर्म निभाया ।
पथिक!सोच,अपने जीवन में,
तूने क्या खोया,क्या पाया ? 4।।


 □ डाॅ०त्रिलोकी सिंह
हिन्दूपुर, करछना,प्रयागराज।

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