सार छंद
विधान-चार चरण,16-12पर यति पदान्त 2-2
अवसर बीते मन घवराते,समझ नहीं कुछ पाये।
बचपन हँसिके खेल बिताए,यौवन सोय गंवाये।
हाय -बुढा़पा कैसे बीते, यही सोच भरमाते।
साथी -संगी रिस्ते भूले,पास नही अब आते।
मानवता को सहज भुलाये,परहित छोडे सारे।
पूजा अर्चन सब कुछ छोडे़,फिरते मारे- मारे।
पाप-कर्म को सहज बटोरे, राजनीति गलियारे।
जन्म-कर्म के साथी छोडे़, भाग रहे मतवारे।
मन चंचल भरमाता निशिदिन, राम-नाम नहि भाये।
भव-बंधन मे फँसते जाते,कथा कौन कहि पाये।
रघुनंदन से नाता जोडें, खुशियाँ सारी पाये।
राम -नाम की ओढ़ चदरिया, मन ही मन हरषाये।
मन भज सीताराम
बुद्धसेन शर्मा
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