माता विद्यावती और पिता थे किशन सिंह
इनके ही बेटे की कहानी लिखता हूं मैं ।
कोख में ही चक्रव्यूह तोड़ने को सीख लेते
येेसे पीढ़ियों की ही जवानी लिखता हूं मैं।
देश भक्ति मौत का भी कारण बनी थी येसे
क्रांतिकारी खून की रवानी लिखता हूं मैं।
आजादी के जंग में मतंग वीर भगत का
निर्भीक आंखों वाला पानी लिखता हूं मैं।
क्रांतिकारी टोली में तो सिंह था भगत सिंहदेश भक्ति उसके तो रक्त में समाई थी।इंकलाप जिंदाबाद रंग दे बसंती चोलागाया गूंज जेल में जो सबको सुनाई थी।फांशी की सजा के लिए माफी नहीं मांगी कभीमाता भारती का लाल वीरता दिखाई थी।बड़ी निर्भीकता से फंदा को गले में डालभगत सिंह की फांसी मुझे आजादी दिलाई थी।
आज देश द्रोहियों को येसे लाल का दुबारा
क्रांतिकारी जीवन दिखाने का भी काम है।
येसे वीर से स्वयं देखो काल डरता था
इसीलिए आजादी भी उसके बनाम है।
देश भक्ति के अलावा माता और पिता की सेवा
जिसको लगे की ये भी करना हराम है।
क्रांतिकारी , संस्कारी, ब्रतधारी इंकलापी
येसे महानायक को मेरा भी प्रणाम है।
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कवि रोहित विश्वकर्मा जिला, सीतापुर, उत्तर प्रदेश |
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