ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

भारत की अमर गाथा-मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"

भारत की अमर गाथा

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भाल इसका उतुंग धवल शिखर हिमालय का,
नभ में ऊपर ही ऊपर बढ़ता जाता,
अंतरिक्ष की असीम ऊंचाईयों को छूकर,
भारत का धवल अमर गाथा है कहता।
चरणों को इससे सतत स्पर्श करती रहती,
हिंद महासागर की पावन जल की लहरें,
यूरोप, अमेरिका के दूर देश तक पहुंचाती,
मां भारती के गौरव गाथा की सुंदर खबरें।

पूरब और पश्चिम के सागर मां को नित्य स्नान कराते,
लगता जैसे दोनों हाथों में मां के तिरंगा ध्वज थमाते,
विस्तीर्ण भुजाएं पूरब और पश्चिम में फैली हुई,
अरि दल को दूर-दूर तक ढकेलते रहते।
चारों दिशाओं से रक्षित रहते सभी धर्म के वासी,
सभी जाति-पाति और धर्म, सम्प्रदाय के है यहां निवासी,

अनेकता में एकता दिखाते प्रेम-भाव से रहते,
एक है और एक ही रहेंगे, यही सदा है कहते।
दुश्मन थर्र-थर्र कांपते हमसे ऐसा साहस रखते,
"वसुधैव कुटुंबकम्" की धारणा हम दिल में अपने रखते,
राज करते हैं हम दिलों पर सबके भूमि पर नहीं करते,
विश्व बंधुत्व ध्येय हमारा अमन-चैन से रहते।
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मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार




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