"सिगरेट "
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सिगरेट |
बुर्जुआ के तर्जनी व मध्यिका में फंसा,
सिमटा ,बेबस सिगरेट, सर्वहारा सिगरेट..
जो देता है शकून- सुलग कर, व
खुद तिल-तिल कर, जल कर ...
शोषक लगाता नहीं है इसे ओठों से ,अपितु ,
चूसता है ...अंतिम कस तक ...किसी
बेकस औरत के, कुंदुरू जैसे रक्तिम् ओठों की..
समस्त उर्जा सोख कर .., विदीर्ण कर भी उसे,
फेंकता नहीं है.. मसल देता है..
कुचल देता है.. दुर्दांत कटीले ..अपने
बूटों की नाल से ..फर्स पर ,अभिशिप्त को..
अंतिम परिणति के लिए ..अर्स पर बैठा हुआ वो त्रासक।
शोषक - शोषित का यह अटूट सम्बंध या
लघुता - प्रभुता का कुटिल अनुबंध...?
एक अनुत्तरित प्रश्न चिन्ह लिए हुए,
आज भी जीवित है यक्ष प्रश्न ।
सिगरेट, बेकस सिगरेट, सर्वहारा सिगरेट!!!
-- चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन "
गोरखपुर
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