ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शीर्षक:-बस माटी के लिए!- प्रतिभा पांडे चेन्नई

शीर्षक:-बस माटी के लिए!


मोह माया व्याप्त चहुँ ओर ,
ना दिखता कहीं ठौर,
सुन्दर रूप रंग !
नहीं टिकता मेरे भैया,
मिल जाएगा मिट्टी में एक रोज ,
चलता फिरता सुन्दर तन-मन ,
सबको अच्छा लगता है ।
वहीं मृत्युपरान्त,
 लोग स्पर्श से भागते हैं!
जिस तन पर मॅडराते रहे ,
एक घन्टा साथ में क्या रखा? 
उसी तन पर उबकाई आने लगी!
जीवन भर मदमस्त रहा ,
यह तेरा वह मेरा करता रहा,
सद्गुण अपनाया नहीं, 
सद्कर्म किया नहीं,
ना प्रभु का स्मरण किया, 
बस आपस में लड़ता रहा ,
अंधा होकर चलता रहा ,
सुन्दर काया पर मरता रहा ,
हवसी बन दरिन्दगी करता रहा...।
अब कुछ ना होगा तेरा ,
मिट्टी से जन्म,
मिट्टी हो गया शरीर तेरा ,
माटी की परिपाटी,
ना कभी पढ़ी तूने, 
बस माटी के लिए!
 रे मानव
 झगड़ता रहा।


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प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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