ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शीर्षक:- अच्छा लगता है-प्रतिभा पाण्डेय चेन्नई

शीर्षक:- अच्छा लगता है


एक शीतल मीठा एहसास,
बांधे है डोर अजीब,
दिल से दिल के तार, 
तेरा एतबार ऐ मेरे महबूब, 
सुकुन भरी सांस,
 तुम्हारा साथ! 
कुछ रह-रहकर गाते हो मेरे अंदर,
अचानक क्यूँ मुस्कुराते हो मेरे अंदर, 
शब्द माला पिरो ना पाये, 
अर्थ समझाने में असमर्थ हो जाये,
क्यूँ हरदम गुदगुदाते हो मेरे अंदर? 
रात गई बात को चले जाना था ना! 
फिर क्यूँ रात भर जगते हो मेरे अंदर? 
तेरे साथ चलना अच्छा लगता है, 
सारे जहान में,
 तुम ही हर जगह क्यूँ दिखते हो?
तेरे साथ में मैं,
 भूल जाती हूँ खुद को, 
प्रेम से तुझ पर ,
नजर गड़ाना अच्छा लगता है ,
ना जाने तू ही क्यूँ सच्चा लगता है !
दिल बारम्बार,
तुझसे लगाना अच्छा लगता है,
लाखों हैं मुझे चाहने वाले, 
पर,
सुकुन की सांस!
बस तेरे साथ अच्छा लगता है ।


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प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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