ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

कविता-शीर्षक जिम्मेदारी- आलोक अजनबी

कविता-शीर्षक  जिम्मेदारी


भूख और जिम्मेदारी ले आई दूर बहुत दूर घर से।
घर परिवार बच्चों की यादों के सहारे,
मैं नितांत अकेला यहां अजनबी सा हूं।
दरवाजे बंद सभी के, कोई परिचय नहीं किसी से।

सब कुछ है मेरे पास
ठंडा कमरा बेहतरीन भोजन में।
फिर भी पूछने वाला कोई नहीं एक रोटी और लोगें क्या?
जीवन जीवन अनुशासनबद्ध  है।
अधिकार कर्तव्य और पद की गरिमा को संभालने का प्रयत्न जारी है।
फिर भर आती हैं आंखें, जब बहन बेटी पूछती है क्या-क्या खाया ?कैसा रहा दिन।

दिन भर की थकान के बाद,
रात में बालकनी की की ठंडी हवा में टहलते हुए घर की यादों को संजो कर सो जाता हूं।
ताकि  तैयार कर सकूं स्वयं को अगली सुबह के लिए

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आलोक अजनबी
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