शीर्षक. मैं भी हूं कृष्ण
विधा. कविता 
लोग कहते है कि
कृष्ण ने राधा संग 
प्रेम किया ,रास किया,
तो हमने भी प्रेम किया
तो क्या बुरा किया? 
कृष्ण के प्रेम को तराजू 
पर तोलने वालो, 
क्या कृष्ण के प्रेम जैसा ही
प्रेम कर पाएं हो तुम? 
आत्मा में किसी को बसा पाए हो तुम?
जिस्म को परे रख उसको खुद से 
पहले रख पाए हो तुम?
कृष्ण का कुछ प्रतिशत भी बन पाए हो तुम?
राधा न हो जाए बदनाम ,
कान्हा ने कभी किसी के सामने
राधा का नाम न लिया,
राधा ने फरेबी कहा, मगर कृष्ण ने
कभी राधा को इल्जाम न दिया।
राधा के पांव में रहते थे मुरारी
और तुम प्रेयसी को भोग समझ,
प्रयोग में ला, गर ना करदे तो 
वैश्या बाजारू तक बना देते हो
जिन क्षणों में वो तुम संग थी,
उन पलों को सरेआम करते हो।
कृष्णा ने लाज बचाई थी,
और तुमने लाज उखाड़ी है। 
और तुम कृष्ण बनने चले हो,
यही से पता लगता है कि कैसे
संस्कारों में पले हो!
एक रूप उनका था वासुदेव,
क्या उससे कुछ सीखा है?
या इस दिन जन्म लेकर ,
तुम खुद को समझे उन सरीखा है?
समाज हित राष्ट्र हित में अबतक
कुछ कर पाए हो,
या अभी तक स्वार्थ तृष्णा के सताए हो?
धर्म को मजहब का नाम देकर
राष्ट्र बांटने वालों,
धर्म तो कर्म है।
तुम तो समझ न सके इसका क्या मर्म है?
प्रकृति रक्षण,जीव रक्षण ,मानव रक्षण
नारी रक्षण और राष्ट्र रक्षण ही सिर्फ धर्म है।
कोई जाति ,कोई मजहब धर्म नही।
मानवता और प्रेम से इंसान है 
बाकी कोई जाति नही।।
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पूनम सिंह भदौरिया
दिल्ली भारत
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