शीर्षक:- आखिरी विदाई ।
चली अर्थी करके साज,
मुक्ति मिल गई आज,
वस्त्र को शरीर से ,
मोक्ष को माया से ,
आत्मा को काया से ,
मिट्टी को मिट्टी में मिला।
बचा ना कोई शिकवा गिला,
रोशनी ढूंढ ली,
अपनी रोशन आत्मा का,
खत्म आत्म चिंतन।
घोर निद्रा अब कभी ना टूटेगी,
ना तो आंसू ,
ना ही हँसी अधरों से छूटेगी ।
अन्तिम बार का दिव्य दर्शन,
आँसू निकलते झर-झर हरदम,
अब याद बनकर रह जायेगी,
अब किसी से कभी ना मिल पायेगी।
अपनों के जाने का गम इतना सताये,
कलेजा निकलकर जैसे मुॅह को आये ,
टूटकर बिखराव ऐसा होता प्रतीत,
अपनी मृत्यु भी समीप हो ,
कितने कठोर विधान ईश्वर ने बनाये,
प्रिय का वियोग कैसे सहा जाये।
शाश्वत सत्य है, अनेको बार विदाई की,
फिर भी सारी दुनिया रो रही,
आखिरी विदाई अपनों की,
रोकर कर रही|
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई


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