उसने कहा जा कर बता किसी समझदार को।
राज़ खोलने के लिए ही बदनाम हूं ज़माने में मैं,
इसलिए तू ढूंढ अपने लिए किसी वफादार को।
मैं जानती हूँ वो कहानी सुनेगी भले जवाब न दे,
वो टूटने भी नही देगी उस पर मेरे ऐतबार को।
उस पर लकीरें खींच के दिन हफ़्ते महीने गिने,
इसलिए वो जानती है मेरे सब्र और इंतज़ार को।
दुनिया ने मुझे हंसता खेलता झूमता देखा होगा,
सिर्फ उसने देखा है गिरते आँसूओं की धार को।
'मनीषी' की हर कहानी पर उसका भी हक है,
उसने ही सहा है हर बार मेरे हाथ की मार को।
-साक्षी श्रीवास्तव 'मनीषी'

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