ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शीर्षक:-छोड़ दो-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-छोड़ दो।

बड़े प्यार से प्यार करते हो, 
आँखों से आदतन इजहार करते हो, 
एकटक यूं क्या देखते हो ?
हमें देख लम्बी आह क्यों भरते हो? 
तस्वीर मेरी मैंने !
तेरे सीने पर आज पायी !
मुस्कुरा रहे थे जब तुम,
तेरे सीने से लिपट मैं बहुत रोई।
हर बात पर मेरे तुम मुस्कुरा देते हो,
पता नहीं सुनते भी हो !
या बस प्रेम में डूबे रहते हो ?
खुद हरण हो गई हूँ मैं, 
तेरे दिल से वरण हो गई हूँ मैं!
फैल रहे हो ,
दिल की दुनियॉ पर बेलगाम, 
असीमित प्रेम के घर में तेरे,
 रह रही हूँ मैं, 
कभी-कभी तन्हॉ जो सताते हो,
सताना छोड़ दो, 
ख्याबों में अधरों को  छू जाते हो,
 छोड दो।
मुरीद हो गया दिल ,
तेरे और तेरे प्यार का, 
अब वफा के किस्से,
 रोज-रोज सुनाना,
 छोड़ दो|

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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