अजनबी से बात न करना
तो विश्वास करना सही है!
पलको पे जिसकी शमाई थी
उन नैनो को रुलाना क्या सही है !
चंद रोज की मोहब्बत के लिए
बीस साल नौ महीने पुरानी मोहब्बत
भूल जान क्या सही है!
दिखावे की चिंता यार की या
पिता की कपसन वा गुस्से वाला प्यार
क्या सही है !
स्वार्थ र्पुण मोहब्बत या निस्वार्थ
वो मोहब्बत क्या सही है!
इसलिए तो कहा था बिटिया अजनबी
से बात ना करना !
खुले आसमान की इस दुनिया में किसी
पर विश्वास न करना सासो की मोती को
यू निश्वार ना कर !
अजनबी से बात न करना
तो विश्वास करना क्या सही है!
उन बूढ़े मां बाप से एक बार सलाह कर
लेना मोहब्बत के दावेदार को उनकी
परीक्षा से गुजरने देना!
क्या पता उन्माद नतीजा निकल जाए और
पेतिश टुकड़ों में टूटने से गुलाब कोई बच
जाए!
मुक्तक......
अनुप्रिया कुमारी

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