ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

ग़ज़ल-आलोक अजनबी

ग़ज़ल
खुशबू की तरह आया वों तेज हवाओं में।
मांगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में।।
सफर में तो आए और गए भी संग मेरे।
बस महफिल में ही दिखे किसी और की बांहों में।।
चेहरे पे मुस्कान और हाथ में गुलदस्ता।
हमने तो देख लिया था खंजर तेरी बाहों में।।
गिरे "अजनबी" की नजरों में तो संभाल  लेंगे हम।
देखो कहीं गिर ना जाना खुद की ही निगाहों मे

© आलोक अजनबी

Post a Comment

0 Comments