ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

मेरा गांव-आलोक अजनबी

मेरा गांव
आज मैं इंडिया से भारत आया हूं।
 अपने बच्चों को अपने ही गांव लाया हूं।।
कुछ-कुछ बदला है मेरे गांव में।
 A C से ज्यादा मजा है बरगद की छांव में।। 
                               
खाते है जो मैगी और घूमते हैं माल।
दादी की मीठी सेवैइयां खा बोले वाह कमाल।।
दादा की बच्चों को बैलगाड़ी में घुमाया।                             
उनको अपनी गाड़ी से भी ज्यादा मजा आया।।

दूध दही घी मक्खन सब जी भर के खाया।
शहर में तो इतना लेते हुए मैं कंजूस ही कहलाया।।
सुबह सब बच्चों को उठाया गया।
खेत में दूर तक दौड़ाया गया।।

मैले कुचेले कपड़े और मुंह में दूध की धार वाली वह फोटो देख बच्चे होते हैं उदास।।
कोई खेत कोई बैलगाड़ी नहीं है आसपास।।
अब कैद है यादों में मेरे बच्चों को मेरे गांव की तस्वीरें।
अब भारत से इंडिया वापस जा रहा हूं।
मैं गांव से महानगर आ रहा हूं।

© आलोक अजनबी

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