ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

गजल

गजल

अजनबी था , अजीज हुआ फिर से अजनबी हुआ है।
एक दोस्त मेरा खामखां मुझ से खफा हुआ है।।
ऐसा ना हो कभी मिले तो तेरा दिल ये कहे।
यह शख्स तो मेरा कहीं देखा हुआ है।।

वक्त यूं भी कम है मोहब्बत के लिए।
रूठ कर वक्त गवानें ने की जरुरत क्या है।।
फूल सा दिल है अ दोस्त सभांले रखना।
मुरझा आ गया तो पता लगेगा कि खुशबू क्या है।।
हम भी खफा हो गए तो मनाओगे कैसे
तुमने अपने आप को समझा क्या है।।

© आलोक अजनबी

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