ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

गजल-आलोक अजनबी

गजल
सब फैसले होते नहीं सिक्के उछाल के।
ये दिल के मामले हैं जरा देखभाल के।।
झूठ मुठ का गुस्सा और शरारती मुस्कान।
तेरी जुल्फों से झड़ रहे थे रंग गुलाल के।।
नकाब सरकी तो चांद देखा मैंने।
हम कब तक रखते अपना रोजा संभाल के।।
मिस कॉल तो देते हो फिर फोन उठाते ही नहीं।
तुम तो मोबाइल रखते हो कितने कमाल के।।
फिर ना मिल जाए कहीं आस्तीन के सांप।
वोट डालना अब जरा देखभाल के।।
अजनबी बच्चों के पैर चादर से बाहर हैं।
वह बेफिक्र सोते हैं पापा को चिंता में डालके।।

© आलोक अजनबी

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