ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शीर्षक:-ठगी सी देखती रह गई-प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

शीर्षक:-ठगी सी देखती रह गई।

बस,
एक दो लोगों तक पहुंचना था, 
पहुंच गये पर इच्छा और की हुई,
दस बारह लोगों की भीड़,
छोटी टोली बन गई ,
 इच्छा और की हुई ,
नयेपन की खोज में,
 बीस से तीस लोग मिले, 
पर इच्छा ,
और तीव्र हो गई,
जिस-जिस ने जाना,
जहाँ-तहाँ सभी ने बुलाया, 
जाने लगी, 
इच्छा की और जगह चलने की फरमाइश हुई ,
आँखों पर चश्मा चढ़कर मुंह चिढ़ाने लगा, 
पर इच्छा की गति और तेज हुई, 
छिछलेपन में गहराई दिखने लगी ,
पर इच्छा की इच्छाशक्ति कम ना हुई, 
सर्वत्र वाह-वाह की गुंजार,
 मन को आह्लादित करने लगा।
पर इच्छा और, और, और की हुई ,
इच्छा के घर में भटक गयी है खुशी! 
एक तारीफ ना आये तो ,
अटक जाती हलक में हंसी, 
इच्छा तारीफ के प्रेम में फंस गई! 
पर,
इच्छा-दुल्हन प्रशंसक की हुई |
और मैं?
ठगी सी देखती रह गई!

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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