ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

हे जगदंबे खोल द्वार-कमलेश कुमार कारुष मिर्जापुर

हे जगदंबे खोल द्वार

हे जगदंबे खोल द्वार, 
करबद्ध निवेदन करते हैं।
मेरे मन रमे मेरे तन रमे,
प्रतिबिंब सदा मन धरते हैं।।

सरिता के सजल घाट,
सभी मन को भाया।
यहां जोगी जती का,
नजारा है छाया।
कल कल बहता जल, 
पल पल भरते हैं।
चढ़ा जगदंबे अंबे, 
जय जय करते हैं।
घंटे बजे जयकारे लगे,
जय जगदंबे,जश मनते हैं।
मेरे मन रमे मेरे तन रमे,
प्रतिबिंब सदा मन धरते हैं।

चम चम चमक रहा, 
चांद जैसे चुनरी।
फहरे पताका फर फर,
सोहे कर में मुनरी।
जुटा हवे भीड़ भाड़,
माई के दुअरिया।
खड़े खड़े करते पूजा,
मिलि सब पुजरिया।
ढोल ढमकते डमरू डमकते, 
नाने नगाड़े बजते हैं।
मेरे मन रमे मेरे तन रमे,
प्रतिबिंब सदा मन धरते हैं।

गुन गुन भजन कीर्तन, 
गाने अति बजते।
चुन चुन माला फूल, 
जगदंबे चढ़ते।
खन खन खनक सिक्के,
चढ़े दान पेटिया।
आते चढ़ावे कलश,
भरि जल मेटिया।
कारुष जी आये,गीत गुनगुनाए,
महिमा कलम से रचते हैं।
मेरे मन रमे मेरे तन रमे,
प्रतिबिंब सदा मन धरते हैं।

कलम से✍️
कमलेश कुमार कारुष 
मिर्जापुर

Post a Comment

0 Comments