शीर्षक:-कॉटो से लिपट कर।
किस्मत में किस लिए अब रोना है,
जो पास हो उसी में खोना है ।
क्यूँ तलाश रहे हो अधिक अच्छा,
दिल नादान हमेशा रहता ही है बच्चा,
घर में ही बस नजर घुमाओ ,
तुम अपनों को गले लगाओ।
सब को एक अवसर जरूर देना है,
कोयले से हीरा खोजना है ।
तलाश लाश की नहीं जागरूक का है,
प्रकृति प्रदत्त भूजल का है,।
कांटों से लिपट कर फूल गुलाब हुआ,
पूर्णता , सम्पूर्णता, फिर आफताब हुआ |
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई


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